Thursday, March 13, 2025

 लिफ़्ट और प्रेम की ऊँचाई

दफ़्तर से देर रात निकलने के बाद मैं अपने अपार्टमेंट की लिफ़्ट में घुसा। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, और मैं अपने फ़्लैट के पाँचवे मंज़िल तक पहुँचने के लिए लिफ़्ट का बटन दबाने ही वाला था कि तभी एक 70-75 साल के बुज़ुर्ग तेज़ी से भागते हुए आए और बोले, "रुको बेटा, मुझे भी ऊपर जाना है!"

मैंने मुस्कुराकर दरवाज़ा खुला रखा। बुज़ुर्ग मेरे साथ लिफ़्ट में आ गए।

"कौन-सी मंज़िल, अंकल?" मैंने पूछा।
"सातवीं," उन्होंने जवाब दिया।

लिफ़्ट बंद हुई और हम ऊपर जाने लगे। मैं काफ़ी थका हुआ था, इसलिए चुपचाप खड़ा रहा, लेकिन अंकल के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी।

वो अपने कोट की जेब से एक छोटा-सा डिब्बा निकालकर खोलने लगे। अंदर से गुलाबी रंग की एक चमचमाती बिंदी निकाली और उन्होंने उसे बड़ी नज़ाकत से अपनी हथेली में रख लिया।

मैंने पूछा, "अंकल, किसी के लिए तोहफ़ा लाए हैं क्या?"

वो मुस्कुराए और बोले, "हाँ बेटा, अपनी पत्नी के लिए!"

अब मुझे और ज़्यादा दिलचस्पी हुई। मैंने पूछा, "वाह! कोई ख़ास मौक़ा है?"

अंकल ने प्यार भरी मुस्कान के साथ जवाब दिया, "अरे हाँ! आज हमारी शादी की 50वीं सालगिरह है।"

मैंने उत्साहित होकर कहा, "अरे वाह! तो फिर कोई बढ़िया सा जश्न-वश्न रखा होगा?"

अंकल ने सिर हिलाया, "अरे नहीं बेटा, ये उम्र अब पार्टी करने की नहीं रही। मेरी पत्नी को बस छोटी-छोटी चीज़ें ख़ुश कर देती हैं। उन्हें ये गुलाबी बिंदी बहुत पसंद है, और पुरानी बिंदी खत्म हो गई थी, तो मैंने सोचा आज उन्हें सरप्राइज़ दूँ!"

मैं उनकी इस मासूमियत भरी बात पर मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। इतने में लिफ़्ट सातवीं मंज़िल पर पहुँच गई।

अंकल दरवाज़े से बाहर निकले, फिर पलटकर बोले, "बेटा, तुम शादीशुदा हो?"

मैंने हँसकर जवाब दिया, "अभी नहीं, अंकल!"

वो मुस्कुराते हुए बोले, "जब शादी हो जाए, तो प्यार को बड़ा करने के लिए बड़ी-बड़ी चीज़ों की ज़रूरत नहीं होती… बस छोटी-छोटी खुशियों का ख़्याल रखना। यही ज़िंदगीभर साथ निभाएगा!"

मैं उनकी बात सुनकर और भी ज़्यादा मुस्कुराने लगा। जैसे ही लिफ़्ट का दरवाज़ा बंद हुआ, मैंने खुद से कहा— "सही कहा अंकल ने… प्यार की ऊँचाई किसी सातवीं मंज़िल से भी बड़ी होती है!"

RAJNISH MISHRA

Wednesday, March 16, 2022

हैपी होली भाई साहब

 कुछ दिनो पहले शाम को बस स्टाप पर बस का इंतेज़ार कर रहा था। कोरोना के वजह से बसों में संतुलन बनाए रखने हेतु, मिनटों पहले गुजरी दो बसों से रिजेक्ट होने के कारण काफ़ी फ़्रस्ट्रेटेड था। तभी मेरे सामने आकर एक ऑटो रुक गया। ऑटो वाला चिल्ला रहा था “ तगरी कानपुर, तगरी कानपुर…….” उसे सुनते ही मेरे दिमाग़ में जो पहला सवाल आया वो था कि जिस सहर का प्रमुख भोजन ‘गुटखा’ हो वहाँ की जनता कब से इतनी तगरी हो गयी। और दूसरा ये की जिस समय में पेट्रोल का भाव  I.A.S बने लड़के के दहेजिया भाव से भी ज़्यादा बढ़ चुका है उस समय में ये ऑटोवाला कानपुर तक सवारी ढ़ोने की हिम्मत कैसे कर पा रहा है। मुझे संदेह हुआ, मैंने उसके लपलपाते होठों पर गौर किया और फिर गौर से सुनने की कोसिस की, फिर उसके मुख से निकले अव्यवस्थित ध्वनि तरंगों को प्रॉसेस किया, और फिर जाकर जो चीज़ सामने आयी वो थी “तिग्री, खानपुर, खानपुर, तिग्री……”।ये दोनो इलाक़े हैं तो दिल्ली में ही स्थित पर मिज़ोरम से भी ज़्यादा जनसंख्या को कोंचने की हैसियत रखते हैं। 


इतने में ऑटो से एक हटा-कट्टा युवक निकला। उसने बिना नीचे ज़मीन पर देखते हुए, अपना 10 के.जी का पैर वहाँ रख दिया, पैर के साथ-साथ उसके सरीर के शेष 80 के.जी का भार भी उसी स्थान पर केंद्रित हो गया। बदक़िस्मती से उसके पैरों और ज़मीन के बीच मेरा पैर वैस ही फँस गया था जैसे क्रूर और कपटी नेताओं के बीच फँस गए बेचारे राहुल गांधी।


पैर टमाटर के तरह पिचकने ही वाला था की मैंने प्रतिरोध किया “ भाई साहेब! तोड़ दोगे क्या?”। निफिक्र अन्दाज़ में महोदय ने जवाब दिया “ अरे भई टूटा तो नहीं न! टूट जाता तब कोई बात होती” 


मैंने खीज कर कहा “ अजीब बदतमीज़ आदमी हो यार! तोड़ देते तभी चैन मिलता तुम्हें?” 


उसने माहौल को ठंढा करने की कोशिश की “ सारी भाई साहेब !” 


मेरा ग़ुस्सा चरम पर था। मैंने फ़्रस्ट्रेशन मिश्रित ग़ुस्से के साथ कहा “ क्या सारी यार! पहले पैर तोड़ दो फिर सारी बोल दो, मेरा पैर है किसी फ़िल्मी बॉलीवुड गाने वाला दिल नहीं है जो फ़िल्म के बीच में टूट कर तुरंत जुड़ भी जाए”। 


मैं पत्थर से चोट खाए हुए भौंकते कुत्ते सा बड़बड़ा रहा था और वो ‘कुत्ता भौंके हज़ार, हाथी चले बाज़ार’ वाले सिद्धांत से जिस ऑटो से उतारा था वापिस उसी में बैठ गया। ऑटो चलने ही वाला था की उसने ज़ोर से कहा “ हैपी होली भाई साहब ”। 


मैं बड़बड़ा रहा था पर उसके इस वाक्य ने मेरे चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान ला दी। मैं समझ नहीं पाया क्या हुआ, पर जैसे ही ऑटो थोड़ा आगे बढ़ा मैंने मुस्कुराते हुए कहा “ हैपी होली भाई ”।

Tuesday, January 11, 2022

स्वामी विवेकानन्द और हम

 स्वामी विवेकानन्द और हम

भारत के गौरव एवं विद्वान संत स्वामी विवेकानंद का जन्म १२ जनवरी सन १८६३ को एक कायस्थ परिवार में हुआ था।  उनके बचपन का घर का नाम वीरेश्वर रखा गया था, लेकिन उनका औपचारिक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।  पिता विस्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के एक प्रसिद्द वकील थे।  दादा दुर्गाचरण दत्ता संस्कृत और फारसी के विद्वान् थे, उन्होंने अपने परिवार को २५ की उम्र में छोड़ दिया और एक साधु बन गए।  उनकी माँ भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारो की महिला थी। 

व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि स्वामी विवेकानंद जी को मानव जाति के लिए प्रेरणा के लिए हमेशा याद किया जाना चाहिए। स्वामी निस्संदेह, उपलब्धि, गर्व, और प्रेरणा का सबसे बड़ा श्रोत है। उन्होंने हमें बिना शर्त प्यार सिखाया, वापस देने के महत्व को मजबूत किया और हमें एक बेहतर इंसान बनना सिखाया। 

यहाँ मै उनके कुछ महान शब्द रख रहा हु, जिन शब्दों को मै छू नहीं सकता, जैसे वे किताबो के पन्नो के माध्यम से बिखरे हुए है, जो मेरे शरीर में बिजली के झटको कि तरह रोमांच उत्पन्न करते है। और क्या झटके, क्या परिवहन उत्पन्न हुए होंगे जब ये शब्द स्वामी जी के होठो से जलते हुए निकले होंगे -

  • कीमत रिश्तो की नहीं, विश्वास की होती है। 
  • शुभचिंतक या प्रशंसक।
  • अनुभव की एक ठोकर इंसान को मजबूत बनाती है। 
  • रिश्ते बचाने है तो चुगलखोरो से सावधान रहे। 
  • मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी, यू तो कहने को इंसान बहुत है। 
  • अपने गुस्से को अपनी ताकत बना लो।  क्रोध को पालना सीखो। 
  • बाज़ के बच्चे मुंडेर पर नहीं उड़ते। 
  • जीवन की असली ख़ुशी उस काम को करने में है, जिसे लोग कहते हो कि तुम नहीं कर सकते।
इसके आलावा मै स्वामी जी के कुछ सुनहरे नियमो पर भी प्रकाश डालना चाहूंगा -
  • जो आपकी मदद कर रहा है, उसे मत भूलना 
  • जो तुमसे प्यार करते है, उनसे नफ़रत मत करना।। 
  • जो आप पर विश्वास कर रहे है, उन्हें कभी धोखा मत देना।।। 
  • जो कुछ भी आपको शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से कमजोर बनाता है, उसे ज़हर के रूप में अश्विकार करे। 
  • दिन में कम से कम एक बार खुद से बात करे, नहीं तो आप इस दुनिया के सबसे बेहतरीन इंसान से कभी नहीं मिल पाएंगे। 
  • रिश्ते जिंदगी से ज्यादा जरुरी होती है, लेकिन उन रिश्तो में जिंदगी का होना जरूरी होता है। 
  • अगर तुम मुझे पसंद करते हो तो मै तुम्हारे दिल में हु, अगर तुम मुझसे नफ़रत करते हो तो मै तुम्हारे दिमाग में हु। 
  • मष्तिष्क को उच्च विचारो और उच्चत्तम आदर्शो से भर दे, उन्हें दिन रात अपने सामने रखे। 
  • हम वही है जो हमारे विचारो ने हमें बनाया है।  इसलिए आप इस बात का ध्यान जरूर रखे कि आप क्या सोचते है।  क्योकि शब्द गौण है। परन्तु विचार रहते है : वे दूर तक यात्रा करते है। 
  • दुनिया एक महान व्यायामशाला है जहा हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते है। 
  • ब्रह्माण्ड की सभी शक्तियाँ पहले से ही हमारी है। हम ही है जिन्होंने अपनी आँखों के सामने हाथ रखा है और रोते है कि अँधेरा है। 
  • जब कोई विचार विशेष रूप से दिमाग पर कब्ज़ा कर लेता है, तो वह वास्तविक, शारीरिक और मानसिक स्थिति में बदल जाता है। 

तो आईये हम उठे, स्वामी विवेकानंद के विचारो के साथ, अंदर से बाहर कि ओर बढ़े।  स्वामी जी ने एकदम सही कहा है कि -

कोई आपको सीखा नहीं सकता, कोई आपको आध्यात्मिक नहीं बना सकता।  तुम्हारी आत्मा के सिवा कोई दूसरा गुरु नहीं। 

इन सभी बातो से मैंने बस यही सीखा है कि -

  • बाज़ कि तरह परवरिश करो बच्चो की। 
  • कोई साथ नहीं देता, आत्मनिर्भर बनो। 
  • दरिया बनकर किसी को डुबोने से अच्छा है कि जरिया बनकर बचाया जाय। 
  • धैर्य रखो। 
  • जान लगा दो या फिर जाने दो। 

आजाद रहिये विचारो से लेकिन बधे रहिये अपने संस्कारो से। 


- रजनीश पराशर


Thursday, June 24, 2021

हम आज़ादी से डरते क्यूं हैं? Rajnish Mishra

Rajnish Mishra                                               


                                   आज़ादी



हम आज़ादी से डरते क्यूं हैं?


कोई भी इंसान किसी बंधन में इसलिए नहीं फंसा होता क्योंकि वो आज़ाद नहीं हो सकता। दरअसल वो इसलिए बंधन में फँसा होता है क्योंकि वो आज़ादी से डरता है। आज़ाद होते ही आपको फैसले लेने पड़ते हैं। अपनी धुंधली योजनाओं को स्पष्ट कर ज़मीन पर उतारना पड़ता है। अपनी ज़िंदगी की बागडोर खुद संभालनी पड़ती है और किसी भी चीज़ के लिए कसूरवार ठहराने के लिए कोई बचता नहीं। और इस सबके बावजूद कामयाबी की कोई गारंटी नहीं। ये सब जोखिम भरा है। इसलिए हम वो काम करते हैं जो ज़्यादातर दुनिया करती है या कहती है। 


जब छोटे थे तो किसी ने कहा ये कोर्स कर इसमें स्कोप है, तो वो कोर्स कर लिया। ऐसे ही फिर नौकरी चुन ली और आज भी बहुत सारे ऐसे ही अपना  जीवनसाथी भी चुन लेते हैं। 25 का होने तक इंसान अपने जीवन से जुड़ा एक भी फैसला ऐसा नहीं बता सकता जिसके बारे में वो कह सके कि ये मेरा था। कुलमिलाकर आज़ादी मन में एक ख्वाहिश की तरह पलती तो रहती है मगर इसको पूरा करने से हम डरते भी हैं। हम डरते हैं क्योंकि हम हमेशा डरते-डरते बड़े होते हैं। डरते-डरते बड़े किए जाते हैं। 


कोई फर्क नहीं पड़ता अगर बच्चे को टॉप टेन स्कूल में एडमिशन नहीं मिला। आपको भी कहां मिला था! आप भी तो गली-मोहल्ले के स्कूल में पढ़कर भी ज़िंदगी में कुछ कर ही गए न। तो बच्चे भी कर जाएंगे। खेल लेने दीजिए उसे खिलौने से जैसे नहीं खेला जाता। उसके गिरने, चोट खाने और पीछा रह जाने को लेकर घबराइए मत। हिदायतें इंसान को सुरक्षा नहीं देती उसे दब्बू बना देती हैं। 


कहते हैं तितली का बच्चा जब इस दुनिया में आता है तो कोकून से बाहर आने के लिए संघर्ष करता है। ये संघर्ष उसे अकेले ही करना पड़ता है। अगर कोई बाहर आने के लिए उसकी मदद करे, तो वो मर जाता है। क्योंकि कोकून से बाहर आने की इस कोशिश में उसके पंखों को ताकत मिलती है! और उसकी मदद की जाए, तो वो मर सकता है।


जॉर्ज बर्नाड शॉ ने एक दफा कहा था कि जो भी इंसान जीवन में बहुत संघर्ष करके ऊपर उठता है, कामयाब होता है और कल को मां-बाप बनता है तो पहली बात वो यही कहता है कि मैं नहीं चाहूंगा कि मेरे बच्चों को वो संघर्ष करना पड़े जो सब मैंने किया। मगर ये सब सोचते हुए वो ये भूल जाता है कि आज वो जो कुछ भी है अपने उन्हीं संघर्षों की वजह से ही है। उसकी शख्सियत में जो आत्मविश्वास जो तेज है वो उन स्थितियों से निपटने के कारण ही आया है।


सुविधाओँ को तश्तरी में परोसकर देना नहीं, बल्कि अँजान रास्तों पर चलने का हौसला और छूट देना ही सच्चा प्यार है ताकि बच्चा कल को आज़ादी की शिकायत करते हुए उससे ही डरते हुए जीवन न बिता दे।


- Rajnish Mishra.

Saturday, May 8, 2021

समय चक्र

 पुराने ज़माने में जब भी कोई राजा किसी राज्य पर चढ़ाई करता तो सबसे आगे अफवाह फैलाने वाले क़ारिंदे जाते, फिर उनके पीछे कुछ गुप्तचर। इसके कुछ किलोमीटर पीछे सैनिक टोली होती। इसमें भी सबसे आगे कुछ घुड़सवार, फिर नाचने गाने वाले, ढोल, ताशे पीटने वाले और फिर मुख्य सैन्य दल। मुख्य दल में आगे राजा या सेनापति, फिर सेना, तोपख़ाना, रसद, मज़दूर, रसोईदल, सफाई दल, हकीम, वैद्य वग़ैरह। यह सब बाक़ायदा तनख़्वाह पाने वाले या भाड़े पर तय किए गए लोग होते थे।


लेकिन फौज के आख़िर में एक टोली और चलती थी । इनको न पैसा मिलता और न कोई मेहनताना, लेकिन ये साए की तरह हर सेना से थोड़ी दूरी बनाकर चलते और हर जगह युद्ध की ख़बर सूंघते हुए पहुंच जाते।


मध्य एशिया में इनको ख़ोस या कफनखसोट कहा जाता था।

इनका काम क्या था?

जंग होती, हारा दल मैदान से भाग जाता या बंदी बना लिया जाता। जीता हुआ दल राजधानी और संसाधनों पर क़ब्ज़ा करने आगे बढ़ जाता। विजेता शवों को वहीं दफ्न कर जाते, दाह-संस्कार कर जाते या ऐसे ही छोड़कर भी आगे बढ़ जाते। यहां से ख़ोसों का काम शुरू होता । ख़ोसे लाशों के शरीर पर मौजूद कवच और अंगूठियां नोचते, मैदान में लावारिस रह गए सामान खोजते, यहां तक कि टूटी तलवारें और दूसरे सामान भी न छोड़ते। जो ज़्यादा चालाक होते वह मरने वाले का पता खोजकर उसके घर निशानी लेकर पहुंच जाते। इसके लिए लूट के अलावा कुछ ईनाम भी पा जाते।


उत्तर भारत अनादिकाल से लाखों छोटे बड़े युद्धों का गवाह रहा है। महाभारत को भी जंग मान लें तो 1857 आते आते पश्चिम, उत्तर और मध्य भारत का कोई ज़िला बचा होगा जिसने कोई जंग न देखी हो । 

इसका नतीजा क्या हुआ ?

लड़ने वाले मैदानों में मर गए। बचे उनके बच्चे, किसान, कुछ कारोबारी, कुछ कर्मचारी या फिर कुछ पेशेवर, मज़दूर जातियां और क़बायली।

बाक़ी?

बाक़ी सब खोसे हैं।

इनकी पहचान?

जब आपदा आएगी तो घरों में सामान खोजते मिलेंगे। लाशों के ज़ेवर नोचते मिलेंगे। बीमारी फैलेगी तो दवा, ऑक्सीजन ब्लैक करेंगे। एंबुलेंस के दाम बढ़ा देंगे। मजबूरी का पूरा-पूरा फायदा उठाएंगे। लूटेंगे, खसोटेंगे, मुनाफाख़ोरी करेंगे, ठगी करेंगे और जहां मौत का तांडव चल रहा होगा, वहां जश्न मनाएंगे। इस काम में अमीर, ग़रीब, जाहिल, पढ़े-लिखे सब शामिल होते हैं।


ये गुण भारत की नब्बे फीसदी आबादी में है। यहां वही नेक है जिसे मौक़ा नहीं है। संस्कृति का घंटा बजाते रहिए मगर ये ख़ोसों का मुल्क है। ऐसे ख़ोसे जो मौत का इंतज़ार करते हैं और मरने पर सामूहिक भोज करते हैं।

लेखक- रजनीश मिश्र

Thursday, October 17, 2019

Green and Spiritual Foundation

Green and Spiritual Revolution

Today - 17 October, 2019.
Time - 10am to 1.30pm
Place - Rohania, Varanasi, Uttar Pradesh, India.

Team - Green and Spiritual Foundation,  AIEL Students, School Teachers and Students.

Subject - Planting Trees and Donating Spiritual Books.

Work - Done.
#GreenAndSpiritualRevolution.
#GreenAndSpiritualFoundation.

Sunday, November 18, 2018

Need Help @ America

                            Give your Help for the 

                                 CALIFORNIA WILDFIRES

Go to the link for the Ground Report -




It's NEED Your HELP.

You can Donate here -




Collected By - Rajnish Mishra